ई-पुस्तकें >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
आउट्रम के पास चार हजार सिपाहियों की फौज रखकर कैंपबेल कानपुर चला गया। उसने अपने साथ तीन हजार सिपाहियों की फौज रखी थी। कैंपबेल के मन में डर के बादल मंडरा रहे थे। कानपुर को बागी सिपाहियों ने घेर लिया था। उसने अपनी चाल तेज कर दी।कानपुर पहुंचने तक शाम हो गयी। गंगा नदी का पुल बचा हुआ था। यह देखकर कैंपबेल ने चैन की सांस ली। लेकिन शहर का नजारा देखकर उसके होश उड़ गये। शहर के मकानों में आग लगा दी गयी थी। आसमान में धुएं का गुबार उठ रहा था। कैंपबेल ने एक राहगीर से पूछा यह आग किसने लगायी है?
‘‘तात्या टोपे ने।’’
‘‘कौन है यह तात्या टोपे।’
‘‘नाना साहब का नया मुख्य सेनापति।’’
कैंपबेल ने यह नाम पहली बार सुना था। अंग्रेजों ने नाना साहब पेशवा को कानपुर छोड़ने पर मजबूर किया था। इस बात का सबसे ज्यादा दुख तात्या टोपे को हुआ था। उसने शपथ ली कि वह नाना साहब को उसी गौरव के साथ कानपुर में वापस ले आयेगा। वीर तात्या टोपे नाना साहब का सबसे करीबी और निष्ठावान सेवक था।
तात्या टोपे के सिर पर भूत सवार हुआ था। उसने ठान लिया कि श्रीमंत नाना साहब को पेशवा पद का गौरव दिला कर रहूंगा। तात्या बहादुर सिपाही था। उसमें अद्भुत शक्ति थी। उसने सबसे कम समय में पच्चीस हजार सिपाहियों की फौज खड़ी कर दी। लखनऊ जाते समय कैंपबेल ने कानपुर की बागडोर मेजर जनरल चार्ल्स विंडहम को सौंपी थी। तात्या टोपे कानपुर पर हमला करने निकल पड़ा था। विंडहम बेखबर था जिसके कारण वह पहली लड़ाई बिना लड़े हार गया।
तात्या टोपे को मालूम हुआ कि कैंपबेल नदी के पार पहुंच गया है। तात्या टोपे ने कैंपबेल की शिविर की दिशा में तोपें चलायीं। कैंपबेल के तोपखाने का प्रमुख कैप्टन विलियम पॉल ने जवाबी तोपें चलानी शुरू कीं। बागी सिपाहियों की छोटी तोपों के मुकाबले में पॉल की तोपें कहीं अधिक सशक्त और लंबी थी। पॉल की तोपों के सामने तात्या टोपे की तोपें बेकाम हुईं। कैंपबेल जख्मी सिपाहियों और औरतों, बच्चों को लेकर छावनी की ओर निकल पड़ा।
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