लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

55 पाठक हैं

संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

सतीचौरा की घटना कोई भूल नहीं पाया। नाना साहब समझ नहीं पा रहे थे कि बागी सिपाहियों ने किसके बहकावे में आकर निरपराध अंग्रेजों का कत्ल किया है। कंपनी सरकार की प्रतिक्रिया जानने के लिए उन्होंने कुछ लोगों को इलाहाबाद भेजा। आधे रास्ते से लौटकर जासूसों ने जो खबर दी, उसे सुनकर नाना साहब के हाथों का राजदंड थरथराया। ब्रिगेडियर जनरल हेनरी हैवलॉक इलाहाबाद से निकल पड़ा था। उसके साथ एक हजार सिपाहियों की फौज थी। वह दिन था—7 जुलाई। उसने नेपोलियन के शब्दों में सिपाहियों का वीरतापूर्वक आह्वान किया—‘‘हम अब एक बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। कानपुर पर कब्जा करने पर ही हम चैन की सांस लेंगे। हमें अपने अंग्रेज भाई-बहनों की हत्या का बदला लेना है।’’

बारिश के दिन शुरू होने वाले थे। वातावरण में गर्मी बढ़ गयी थी। इस भीषण गर्मी में सिपाही मुहिम पर निकल पड़े थे। अंग्रेज सिपाही ऐसी गर्मी से बेहद परेशान हो रहे थे। हैवलॉक के सिपाहियों में वह जोश नहीं था जो लड़ाई पर निकले सिपहियों के पास होना चाहिए। हैवलॉक इस बात को भली-भांति समझ गया था। लेकिन वह धीरज रखकर कह रहा था, ‘‘हमारे कानपुर पहुंचते ही स्थिति नियंत्रण में आ जायेगी। शत्रु को सामने देखकर हमारे सिपाहियों में जोश पैदा हो जायेगा।’’

चार दिनों में चालीस दिनों का फासला तय हो चुका था। सिपाही अलसा गये थे। उनकी गति धीमी पड़ गयी थी। वे अब आपस में चर्चा करने लगे, ‘‘दुश्मनों ने कानपुर के आसपास बंदोबस्त पक्का किया होगा। हम कानपुर पर कब्जा नहीं कर सकेंगे।’’ कंपनी सरकार की हर निशानी मिटाने का काम बागी सिपाहियों ने किया था। रास्ते में हर सरकारी कचहरियों को आग लगा दी गयी थी। सभी जगहों पर अधजले सरकारी भवन और उनसे निकलता धुआं नजर आ रहा था। रास्ते के मील के पत्थर उखाड़कर खेतों में फेंक दिये गये थे। सिपाहियों को कानपुर की दूरी का अंदाजा नहीं लग रहा था।

मेजर रेनॉ के नेतृत्व में निकले अंग्रेज सिपाहियों ने निर्मम अत्याचार ढाने शुरू किये। गांव के हर पेड़ पर देसी आदमी की लाश  लटक रही थी। सतीचौरा हत्याकांड की घटना से रेनॉ भड़क गया था। उसने कसम खायी थी कि ‘‘मैं एक भी देसी आदमी को जिंदा नहीं रहने दूंगा।’’

एक बार सशस्त्र लड़ाई शुरू हो जाये तो दोनों तरफ की शक्ति सीमाओं का अंदाजा लग जाता है। जीतनेवाला हमेशा नसीबवाला माना जाता है। रेनॉ यह मानता था कि बेगुनाह अंग्रेजों की हत्या करके नाना साहब के हाथ खून से रंग गये थे। लेकिन रेनॉ के हाथ भी बेगुनाह देसी आदमियों के खून से रंग गये थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book