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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ८ :

कस्तूरीलाल तो यमुना को पहले ही अभिमान और मूर्खता की पुतली मानता था। अब सुमित्रा भी उसके विषय में यही धारणा बना बैठी।

रात को जब मोहिनी अपनी लड़कियों के साथ सोने लगी तो सुमित्रा ने यमुना के साथ हुई बातचीत बताते हुए पूछ लिया, ‘‘माँ, मुझे वह झूठी क्यों कहती थी?’’

‘‘इसलिए कि वह स्वयं बुद्धिहीन है। उसकी बुद्धि पर अभिमान की परत चढ़ी हुई है।’’

‘‘देखो सुमित्रा! हम गरीब हैं, यह ठीक है। परन्तु गरीब होने से न कोई छोटा होता है और न बुरा ही। अपने पूर्व-जन्म के कर्मों से किसी को धन मिलता है, किसी को बुद्धि। हमारे भाग में बुद्धि आई है और यमुना के भाग में धन। यदि हम धन के विचार से छोटे हैं तो वह बुद्धि के विचार से छोटी है।’’

‘‘तो दोनों में कौन छोटा है?’’

‘‘जो बुद्धि के विचार से छोटा होता है, वह सबसे छोटा होता है। अन्त में वहीं छोटा माना जाता है। धन तो बिना बुद्धि के टिक नहीं सकता।’’

‘‘माँ की बात सुन सुमित्रा के मन में सन्तोष हो गया। उस दिन के बाद उसने यमुना से बात न करने का निश्चय कर लिया। चरणदास ने सुमित्रा को यह बताया हुआ था कि अपने से छोटों से बातें नहीं किया करते। जब माँ ने समझाया कि बुद्धि में छोटी है और बुद्धि ही मुख्य बात है तो उसने यमुना के साथ बातचीत करनी बन्द कर दी।

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