लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘नो-नो, मैं सैवन्थ स्टैण्डर्ड में हूँ।’’

सुमित्रा ने कहा, ‘‘मालूम होता है कि तुम्हारा स्कूल बहुत ही घटिया है।’’

‘‘तुम्हारा स्कूल रद्दी होगा।’’

‘‘तुम्हारे स्कूल में पढ़ाई कम होती है। जो तुम्हारे स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ाया जाता है, वह हमारे यहाँ दूसरी में पढ़ाया जाता है।’’

यमुना यह समझ नहीं सकी। वह भागी हुई अपने कमरे में गई और अपनी अंग्रेजी की दूसरी किताब उठा लाई। फिर सुमित्रा को दिखाकर पूछने लगी, ‘‘यह तुम्हारे स्कूल में किस कक्षा में पढ़ाई जाती है?’’

सुमित्रा ने देखा और बताया, ‘‘दूसरी में।’’

यमुना इस रहस्य को समझ नहीं सकी। वह समझी कि सुमित्रा झूठ बोल रही है। उसके मन में यह धारणा तो बनी ही थी कि वह निर्धन की लड़की है। अब एक और धारणा यह भी बन गई कि वह झूठ भी बोलती है। इस कारण कुछ विचार कर उसने कहा, ‘‘यह नहीं हो सकता। तुम झूठ बोल रही हो।’’

‘‘हमें झूठ बोलने की आदत नहीं है।’’

‘‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि झूठ बोलना पाप है।’’

‘‘पर तुम बोल रही हो।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book