लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ७ :

चरणदास के बच्चे कस्तूरीलाल से बहुत हिल-मिल गये थे। केवल यमुना ही थी, जो उन सबसे तटस्थ रहती थी। सुमित्रा यमुना से मेल-जोल करने का यत्न करती तो इस यत्न को वह सदा तिरस्कार की दृष्टि से ही देखती थी।

पहले ही दिन जब सुमित्रा और सुभद्रा लक्ष्मी बुआ के साथ कोठी में आई थीं तो वे यमुना के कमरे के बाहर जाकर खड़ी हो गईं। यमुना अपनी मेज के सम्मुख बैठी कुछ लिख रही थी। उसने दोनों को कमरे के दरवाज़े पर खड़े देखा था, परन्तु न देखने का बहाना कर वह मुख नीचा किये लिखती रही। दोनों बहनें कुछ देर तक दरवाज़े के बाहर खड़ी रहीं और फिर भीतर चली गईं। यमुना ने सिर नहीं उठाया। सुमित्रा देखने लगी कि वह क्या कर रही है। उसने देखा कि वह अंग्रेज़ी का सुलेख लिख रही थी। यमुना का लेख सुन्दर था। इस कारण जब यमुना ने एक पंक्ति समाप्त की तो सुमित्रा ने कह दिया, ‘‘सुन्दर! बहुत सुन्दर!’’

यमुना ने सिर उठाया और प्रश्न-भरी दृष्टि में समीप खड़ी दोनों बहिनों की ओर देखा। वे दोनों मुस्करा रही थीं। जब वे नहीं बोलीं तो यमुना ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘तुम्हारी बहिनें।’’

‘‘मेरी कोई बहिन नहीं है।’’

‘‘हम हैं, विश्वास न हो तो मम्मी से पूछ लो।’’

‘‘तो जाओ, मम्मी के पास ही बैठो। मैं स्कूल का काम कर रही हूँ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai