लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘तो मिस्टर आनन्द ने आपको यह सब बताया है?’’

‘‘जी नहीं। आनन्द साहब ने तो मुझे वे कागज टाइप करने के लिए दिए थे। उनसे ही मैं यह जान पाया हूँ।’’

‘‘हमें ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है, जो हमारे और वकील साहब के बीच भाग-दौड़ कर सके। मैंने आनन्द साहब से किसी चतुर मुंशी के लिए कहा था। उन्होंने अभी तक किसी को भेजा नहीं है। यदि आप आनन्द साहब की चिट्ठी ले आते तो मैं आपसे बातचीत कर लेता।’’

‘‘पत्र तो मैं ला सकता हूँ।’’

‘‘ठीक है, पहले वह पत्र ले आइये, फिर बातचीत होगी।’’

प्रसन्न-वदन सुरेन्द्रकुमार चला गया। उसके जाने के बाद गजराज बोला, ‘‘यह वकील है। मैंने मुन्शी माँगा है, जिसे मैं साठ रुपये मासिक वेतन दूँगा। मैंने इसके सम्मुख कहा भी है कि मुझे मुन्शी की श्रेणी का कोई व्यक्ति चाहिए। यह जानकर भी यह प्रसन्न होकर चला गया है।’’

‘‘मैं समझता हूँ, जब इसको वेतन का पता चलेगा तो फिर वह नहीं आयेगा।’’

‘‘नहीं, नहीं, यह अवश्य आयेगा और साठ रुपये की नौकरी भी स्वीकार कर लेगा।’’

‘‘क्यों, आप यह किस प्रकार कह सकते हैं?’’

‘‘जो व्यक्ति एक वकील-जैसा स्वतन्त्र व्यवसाय सीखकर भी नौकरी के लिए आता है, वह अति मन्द-भाग्य और साथ ही मन्द-मति भी है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai