ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
जब सुमित्रा गजराज को नमस्ते करने के लिए लॉन में आती तो वह पूछ लेता, ‘‘कस्तूरी, कहाँ है?’’
‘‘अभी सोया ही होगा।’’
‘‘उसको भी तो समय पर उठना चाहिए न?’’
‘‘फूफाजी, उसको उठाऊँ?’’
‘‘हाँ, जाकर कहो कि मैं बुला रहा हूँ।’’
‘‘सुमित्रा भागकर कस्तूरी के कमरे में जाती और उसकी बाँह पकड़कर, बिस्तर से बाहर घसीटती हुई लॉन में ला, उसके पिता के सामने खड़ा कर देती।
गजराज कहता, ‘‘कस्तूरी, कुछ तो लज्जा का अनुभव करो। तुमसे भी छोटे बच्चे उठकर, सन्ध्योपासना कर तैयार हो जाते हैं और तुम अभी तक सो रहे हो।’’
‘‘अभी तो छः ही बजे हैं पिताजी!’’
‘‘ओ छः के बच्चे! दूसरों के पास भी घड़ी है। उनकी घड़ी में भी छः ही बजे हैं। फिर भी वे साढ़े चार बजे उठते हैं।’’
धीरे-धीरे उस घर में इसका प्रभाव हो रहा था।।
|