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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


चरणदास के मन में अपनी बहिन की कोठी पर जाकर रहने अथवा उसका अन्न खाने का किंचित् भी विचार नहीं था। जब बच्चे लक्ष्मी के साथ चले गये तो चरणदास ने दिल लगाकर पढ़ाई आरम्भ कर दी। परीक्षा में केवल सात मास ही शेष थे और उसे इस अवधि में दो वर्ष का सारा पाठ्यक्रम समाप्त करना था।

सायं चार बजे वह अपने बच्चों से मिलने के लिए जाया करता था। यह समय चार और अल्पाहार का होता था, किन्तु गजराज प्रायः उस समय भी अनुपस्थित ही रहता था। उसके तुगलक रोड़ पर कुछ कोठियाँ बनाने का ठेका ले लिया था, इस कारण प्रातः-सायं वह अपने कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह केवल मध्याह्न अथवा रात्रि के भोजन के समय आता था और उस समय चरणदास वहाँ नहीं होता था।

एक बात तो गजराज ने भी अनुभव की कि घर में तीन प्राणी अधिक हो जाने से चहल-पहल आरम्भ हो गई है। सुमित्रा तो कस्तूरी से बहुत हिल-मिल गई थी। सुभद्रा फूफा के कन्धों पर चढ़ी रहती थी। मोहिनी निर्धन और समाज में छोटी स्थिति के माता-पिता की लड़की होने के कारण स्वभाव से विनयी, सहिष्णु और कृतज्ञ थी। यों तो सब एक स्कूल-मास्टर-परिवार के सदस्य होने के नाते स्वच्छता-प्रिय थे और बड़ों का आदर-सम्मान करना उनका स्वभाव था।

गजराज के बच्चे प्रायः सात बजे से पूर्व नहीं उठते थे और सुभद्रा तथा सुमित्रा और उनकी माँ पाँच बजे से पूर्व ही उठकर, स्नानादि से निवृत्त हो सन्ध्या-वन्दना किया करते थे। गजराज भी प्रायः इसी समय सोकर उठता था। घर में ‘ओं शन्नो देवीरभिष्टय...’ इत्यादि मन्त्रोच्चारण के शब्द सुन विस्मय के साथ-साथ वह मन में प्रसन्नता भी अनुभव करता था। वह लॉन में टहलकर अपनी सुस्ती दूर कर रहा होता था कि सुमित्रा और सुभद्रा भागती हुई आतीं और ‘फूफाजी, नमस्ते’ से अभिवादन करतीं। गजराज को आर्यसमाज की बातें पसन्द नहीं थीं, फिर भी यह अभिवादन तो उसके मन में कौतूहल और आह्लाद उत्पन्न करता ही था।

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