लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘मुकर्रम लालाजी,
आप दो हफ्ते से तशरीफ नहीं लाये। इससे दिल बेकरार रहता है। रात-भर आपकी याद में नींद से महरूम रहती हूँ। कभी तो खुले-खुले आँखें भी दर्द करने लगती हैं। बिस्तर सूना-सूना दिखाई देता है।

‘‘यह तो बेरहमी की हद है कि एक बेबस इन्सान तड़प-तड़पकर राते गुजार रहा हो और दूसरा गुलछर्रे उड़ा रहा हो। आपने पाँच सौ रुपया भेजा है, आपकी ऐन इनायत है। मगर ये चाँदी के टुकड़े दिल की बेकारी किस तरह दूर कर सकते हैं!

‘‘आपका भेजा हुआ चैक बैंक से वापस आ गया है। उस पर आपके दस्तखतों में कुछ गलती हो गई मालूम होती है।

‘‘चैक इस चिट्ठी के साथ ही वापस भेज रही हूँ। जो कुछ आपको देना हो वह खुद तशरीफ लाकर दे जाया कीजिए। बैंक के लोग चैक को देख मेरे मुख पर देखने लगते हैं, खास तौर पर जब चैक हर महीने कायदे से आ रहे हैं।’’

‘‘आप कल तशरीफ लायें। मेरी अर्ज मानें तो कल दोपहर के समय आ जाइये और रात को इस खादिमा के गरीबखाने को रौनक बख्शिये।
आपकी बाँदी
शरीफन’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai