ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
नीचे नाम और ऊपर पत्र आने के स्थान के विषय में कुछ भी संकेत उस पत्र में नहीं था। चरणदास विस्मय कर रहा था कि यह कौन हो सकता है। शरीफन ने उसको अभी तक नहीं बताया था कि उसका गजराज से भी कोई संबंध था जो कि अब टूट गया है। चरणदास का विचार था कि यह कोई नहीं जानता कि वह कहाँ पर है, फिर यह पत्र कहाँ से आया?’’
उसने दायी की ओर देखकर पूछा, ‘‘कौन दे गया है यह पत्र?’’
‘‘एक मोटा लम्बा-सा आदमी था।’’
चरणदास हँस पड़ा। उसने पूछा, ‘‘कुछ नाम बता गया है?’’
‘‘जी नहीं, चिट्ठी देकर चला गया है।’’
चरणदास ने पत्र जेब में डाल लिया और शरीफन से बोला, ‘‘मेरी ज़िन्दगी ने करवट ली है। मैं अब पहले से आज़ाद हो गया हूँ। कदाचित् दिल्ली से कहीं अन्यत्र जाना होगा। तुम मेरे साथ चलोगी न?’’
‘‘पहले बताइये, क्या हुआ है? यह किसका पत्र है? इसमें लिखा क्या है? फिर मैं बताऊँगी कि क्या करना चाहिए।’’
‘‘यह पत्र तो ऐसे ही है। मैं अब जा रहा हूँ। कल आऊँगा और आगे के लिए योजना बनायेंगे।’’
इतना कह वह उठकर चला गया। वह अपनी कार किले के पास खड़ी करके आया था। शरीफन के मकान से पैदल ही वह वहाँ तक गया और मोटर में सवार हो घर जा पहुँचा।
|