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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


कस्तूरीलाल समझ नहीं सका। वह चुपचाप इस सब परिवर्तन का अर्थ समझने का यत्न कर रहा था कि गजराज ने कह दिया, ‘‘कल ठीक साढ़े नौ बजे तुम मेरे साथ कार्यालय के लिए यहाँ से चलोगे। वहाँ मैं तुमको अपने सामने चार्ज दिलवा दूँगा।’’

कस्तूरीलाल चुप रहा। गजराज ने आँखें मूँद कुछ विचार किया और फिर आँखें खोलकर कहा, ‘‘अब तुम जाओ। मेरे पुस्तकालय में बीमा सम्बन्धी कुछ पुस्तकें हैं। तुम उनका अध्ययन करो। जहाँ कोई बात समझ में न आए, मुझसे पूछ लेना।’’

अगले दिन गजराज कस्तूरीलाल को लेकर कार्यालय में पहुँच गया। चरणदास तब तक नहीं आया था। दोनों मैनेजिंग डायरेक्टर के कार्यालय में चले गए। वहाँ वे चरणदास के आने की प्रतीक्षा करने लगे।

साढ़े दस बजे चरणदास आया। उसके अपने कमरे में पहुँचते ही चपरासी ने आकर कहा, ‘‘डायरेक्टर साहब सलाम बोलते हैं।’’

इसका अर्थ यह था कि उसको डायरेक्टर के सम्मुख जाना चाहिए। अपने कागज निकालने से पूर्व वह डायरेक्टर के कमरे में चला गया। वहाँ वह कस्तूरीलाल को उपस्थित देख विचार करने लगा कि सम्भवतया कोई घर का झगड़ा होगा।

चरणदास के विस्मय का ठिकाना नहीं रहा जब गजराज ने उनके सम्मुख टाइप की हुई चिट्ठी रख दी। उसमें मैनेजिंग डायरेक्टर के नाम लिखा था–

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