लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘अच्छी बात है, सुन लो। तुम्हारा दोस्त, जिसको तुम मेरे अलावा अपने बिस्तर का शरीक बनाये हुए हो, चरणदास है। यह लड़का मुझसे नहीं बल्कि चरणदास से मिलता-जुलता है। वह सब-कुछ मेरे सामने इकबाल कर चुका है। इसलिए मैंने उसको एक महीने के लिए कहीं बाहर भेज दिया है। मेरा ख्याल था कि इस एक मास में तुम यह फैसला कर लोगी कि हम दोनों में से तुम किसके पास रहना चाहती हो।’’

‘‘आपको क्या ऐतराज है यदि मैं ऐसे ही रहूँ, जैसे अब रही हूँ?’’

‘‘नहीं, मैं यह मंजूर नहीं कर सकता।’’

‘‘अगर मैं चरणदास को पसंद करूँ तो आप क्या करेंगे? यह तो कुदरती बात है कि मैं आपसे कम उमर के आदमी को पसन्द करूँगी।’’

‘‘तो करो, मैं मना नहीं करता, लेकिन मैं इसको पसन्द नहीं करता। मैं आज से तुमसे अपना ताल्लुक छोड़ता हूँ।’’

शरीफन चुपचाप आँखें नीची किये बैठी रही। गजराज नीचे उतर आया। देखने में तो वह नाराज मालूम नहीं होता था। वास्तव में वह दिल में जल-भुन गया था। उसको ज्ञान नहीं था कि चरणदास ने इस औरत को कितना खिलाया-पिलाया था। वह केवल अपने विषय में ही जानता था कि उसने इस औरत को बहुत-कुछ दिया है। उसको दुःख इस बात का था कि जिस आदमी को उसने एक प्राइमरी स्कूल की मास्टरी से उठाकर एक सम्पन्न सेक्रेटरी बना दिया है, वही अब उसका प्रतिस्पर्द्धी बन गया है। केवल इतना ही नहीं, प्रत्युत उसने इस औरत के सम्मुख उसको पराजित कर दिया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book