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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘तो उससे पृथक् हो जाना चाहिए।’’

‘‘अर्थात् उसको तलाक दे देना चाहिए?’’

‘‘तलाक की आवश्यकता तब होती है, जब किसी अन्य से विवाह करना हो।’

‘‘परन्तु हिन्दुओं में तो तलाक होता ही नहीं।’’

‘‘इस कारण कि हिन्दुओं में विवाह लड़के-लड़कियाँ स्वयं नहीं करते। इसलिए तलाक की आवश्यकता बहुत कम रह जाती है। इसके अतिरिक्त हिन्दू अपने संस्कारों के कारण विवाह को एक धर्म का बन्धन मानते हैं। धर्म के बन्धन में तलाक अर्थात् पुनर्विवाह के लिए स्थान नहीं है।’’

‘‘यह तो कठोर बन्धन है।’’

‘‘इसके लिए सरकार ने एक अन्य विवाह का विधान बनाया है। यह कचहरी में जाकर मजिस्ट्रेट के सम्मुख उपस्थित होकर करना पड़ता है। ऐसा विवाह इक्कीस वर्ष की आयु के उपरान्त ही हो सकता है।’’

‘‘यदि विवाह के बिना ही पति-पत्नी बनकर रहने लगें तो?’’

‘‘इसे समाज के नियम को भंग करना कहते हैं। इस अवस्था में यदि किसी विषय में झगड़ा हो जाए तो न समाज और न देश का कानून ही इसमें सहायता कर सकता है।’’

‘‘न करे। झगड़ा होने पर साधारण स्थिति में समाज कर ही क्या सकता है? अन्त में तो झगड़ा करने वालों को स्वयं ही निपटना पड़ता है।’’

‘‘देखो, कोई लखपति का लड़का किसी लड़की से सम्बन्ध बना लेता है। लड़की के सन्तान हो जाती है। तब उसका पति से झगड़ा होता है, तो उसकी सन्तान अपने पिता अथवा पितामह की सम्पत्ति में से कुछ प्राप्त नहीं कर सकती। न कानून इसमें उसकी कुछ सहायता कर सकता है, न ही सम्बन्धी। इस अवस्था में वह लड़की निःसहाय हो जाती है। परन्तु समाज के नियमानुसार विवाह-संस्कार होने पर कम-से-कम कानून तो उसकी सहायता कर ही सकता है।’’

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