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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘उसके बाद वे वहाँ से उठकर सीधे अपने पलंग पर गए और सो गए। जब तक वे सो कर उठे मेरा ज्वर तीन डिग्री कम हो चुका था।

‘‘जागकर उन्होंने स्नान, भोजन किया और पुनः जाप करने के लिए बैठ गए। इस बार उनको जाप करते हुए छः घण्टे भी नहीं बीते थे कि मेरा ज्वर सर्वथा उतर गया।’’

‘‘यह है पिता का वात्सल्य।’’

‘‘परन्तु बूआजी! यह कैसे हुआ? मैं तो समझती हूँ कि वैद्य की चिकित्सा से आपको आराम हुआ होगा।’’

‘‘नहीं बेटी! मुझको विश्वास है कि उनकी प्रार्थना भगवान् ने सुनी और मुझ पर चिकित्सा का प्रभाव हो गया। भगवान् की कृपा हो तो कठिन-से-कठिन कार्य भी सुगम हो जाता है।’’

‘‘मुझको इस पर विश्वास नहीं। भगवान् होगा। माँ नित्य पूजा करती हैं, इस कारण अवश्य होगा। परन्तु बुद्धि तो इस बात को नहीं मानती।’’

‘‘देखो, विलायत की बात दिल्ली में सुनी जाती है न? आज से कुछ ही वर्ष पूर्व यह असम्भव बात प्रतीत होती थी। बुद्धि इसको मान नहीं सकती थी। किन्तु रेडियो लग जाने से यह सब सम्भव हो गया है।’’

‘‘वह तो विज्ञान की बात है। परन्तु परमात्मा तो विज्ञान का विषय नहीं है।’’

‘‘यही तो कह रही हूँ। दस वर्ष पूर्व लन्दन की बात दिल्ली में सुन सकना विज्ञान की बात नहीं थी, आज है। विज्ञान तो विज्ञान ही है। जो सत्य आज है, वह तब भी था। अन्तर यह है कि हमारी बुद्धि का विकास उस समय कम था, आज अधिक है। जो बात तब अवैज्ञानिक प्रतीत होती थी, वह आज वैज्ञानिक प्रतीत होने लगी है।’’

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