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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


वह दो-तीन दिन तक शेषराम से पता करता रहा कि मोतीराम आया है अथवा नहीं। जब मोतीराम का कुछ पता नहीं चला, तो फकीरचन्द ने पूछना छोड़ दिया।

उस घटना को एक सप्ताह से ऊपर हो चुका था कि मीना का घरवाला गिरधारी देवगढ़ में आ पहुँचा। मीना उसे देख चकित रह गई। उसने पूछा, ‘‘आपने आने की सूचना तक नहीं दी?’’

‘‘तुमने बुलाने के लिए रुपया नहीं भेजा था?’’

मीना समझ गई कि शेषराम ने अपने पास से अथवा पंजाबी बाबू से लेकर यह रुपये भेजे हैं। इस कारण उसने कह दिया, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि शेष ने रुपये भेजे हैं। वह कह रहा था कि आपको यहाँ काम मिल सकता है। एक वर्ष से एक पंजाबी बाबू यहाँ आया हुआ है। उसने राजा साहब से जंगल का पट्टा लिया है और बहुत से आदमियों को नौकर रख रहा है।’’

‘‘तो शेष भी उसकी नौकरी करने लगा है?’’

‘‘हाँ, अब पिताजी के घर की हालत सुधर रही प्रतीत होती है। मोतीराम भी, सुना है, बम्बई से बहुत-सा रुपया कमाकर लाया है।’’

‘‘तो वह भी यहाँ हैं? वह तो जेल में था। वह एक सेठ के पास नौकरी करता था और उसका पाँच हजार रुपया चोरी करने पर तीन वर्ष की कैद का दण्ड पा रहा था।’’

मीना चोरी की बात सुनकर सन्न रह गई। मोतीराम ने कहा था कि वह बम्बई से पाँच हजार कमाकर लाया है। उसने मीना को डाँटा था। इसपर भी मीना के मन में भाई के लिए स्नेह उमड़ आया और उसने अपने पति से कहा, ‘‘यह बात किसी से बताइयेगा नहीं। यहाँ वह विख्यात कर रहा है कि रुपया कमाकर लाया है।’’

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