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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


चौधरी ने पूछा, ‘‘नौकरी कहा है या कुछ और भी?’’

‘‘कहा तो नौकरी के लिए ही है; परन्तु चौधरी ! एक युवा औरत को, जिसका पति परदेश गया हो, एक युवक की ओर से निमंत्रण एक ही अर्थ रखता है। मैं इस पंजाबी को मार डालूँगा।’’

चौधरी ने हँसते हुए कहा, ‘‘इससे अपमान बढ़ेगा अथवा कम होगा? मान लो कि फकीरचन्द की नीयत में फर्क है। अभी खराबी तो कुछ भी नहीं हुई प्रतीत होती है। इसपर भी मार डालोगे तो सभी, विशेष रूप में तुम्हारा जीजा तो यही समझेगा कि खराबी हो चुकी है। इससे तुम फाँसी पर लटकोगे और बहन को तुम्हारा जीजा छोड़ देगा। उसके लड़के की तो जिन्दगी ही खराब हो जायगी।

‘‘देखो, मेरा कहा मानो। जाकर मीना को कह दो कि नौकरी करने न जाय। साथ ही अपने जीजाजी को घर बुला लो। बहुत देर से पति के वियोग में तड़प रही होगी।’’

‘‘पर उसने ऐसी बात मन में विचारी ही क्यों?’’

‘‘नौकरी के लिए कहना बिना इस विचार के भी हो सकता है। तुम उसके मन की बात का अनुमान ही तो लगाते हो न? पक्की बात कोई नहीं कह सकता। तुम उस बिचारी के पति को घर पर बुलाते क्यों नहीं?’’

‘‘उसके पास बचता तो कुछ है नहीं। वह कैसे आ सकता है?’’

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