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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


यह बात न तो मोतीराम को बताई गई और न ही मीना को। मीना तो मोतीराम के कटु वचन सुन, मन मारकर घर में ही बैठी रह गई। वह फकीरचन्द की माँ से मिलने का विचार छोड़, अपने पति के घर लौटने की आशा को भी सदा के लिए छोड़ बैठी थी।

मोतीराम को इस बात से क्रोध चढ़ आया कि फकीरचन्द ने एक ब्राह्मण की लड़की को घर के काम-काज के लिए नौकरी करने के लिए कहा है। वह समझता था कि इस नौकरी के लिए निमंत्रण मात्र से ही उसके परिवार का अपमान हो गया है। अगले दिन वह चौधरी रामहरष के पास गया हैं और बाबू फकीरचन्द की निन्दा करने लगा। उसने चौधरी के सामने भूमि पर बैठते हुए कहा, ‘‘चौधरी ! अब तो यह पंजाबी बाबू फकीरचन्द गाँव की बहू-बेटियों का अपमान करने लगा है।’’

चौधरी को इस बात से विस्मय हुआ। उसका फकीरचन्द से घनिष्ट परिचय था। साथ ही वह उसका आभारी भी था। उसके कारण ही उसे हजारों रुपये की आय हो रही थी। उसे मोतीराम की बात पर विश्वास नहीं आया। उसने पूछा, ‘‘क्या कहते हो मोतीराम? किस औरत का अपमान किया है बाबू ने।

‘‘मेरी बहिन का?’’

‘‘मीना का? उस बिचारी से क्या लेना है बाबू ने? क्या मीना ने स्वयं कहा है तुमसे?’’

‘‘फकीरचन्द ने शेषराम के हाथ कहला भेजा है कि मीना उसके घर नौकरी कर ले।’’

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