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धरती और धन
धरती और धन
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 7640
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आईएसबीएन :9781613010617 |
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
इस समय भीतर बैठी वह औरत भी फकीरचन्द की माँ से बातें करने लगी थी। वह पूछ रही थी, ‘‘क्या नाम है बहिन जी, आपका?’’
‘‘रामरखी। पर बहिन जी !’’ उसने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘आपने व्यर्थ में हमको कष्ट दिया है। देखो न, गाड़ी में चढ़ते समय घुटने छिल गए हैं।’’ इतना कहकर उसने सलवार उठाकर घुटने दिखा दिये। माँस छिल गया था और रक्त दिखाई दे रहा था।
इस पर औरत ने कहा, ‘‘हमारे पास चोट पर लगाने का तेल है। रामू !’’ उसने इस लड़के को, जो कह रहा था कि डिब्बा रिजर्व है, सम्बोधन कर कहा, ‘‘जरा मेरी अटैचीकेस में से लाल तेल की शीशी निकालना।’’
इस समय तक बिहारीलाल ने अपने बड़े बिस्तर का सामान समेटकर दो बिस्तर कर दिए थे। अब उसने अपने बड़े भाई को कहा ‘‘भापा ! अब ये खिड़की में से आसानी से निकल सकेंगे।’’
फकीरचन्द हँस पड़ा और बोला, ‘‘क्या मार्ग में सब स्थानों पर ऐसा ही झगड़ा होगा?’’
‘‘हाँ, हो सकता है। मैं समझता हूँ कि हमको सदा तैयार रहना चाहिए।’’ इस पर दूसरे आदमी ने कह दिया, ‘‘लड़का ठीक कहता है। जीवन में बहुत मिलेंगे, जो बिना झगड़े के स्थान नहीं देंगे। प्रत्येक परिस्थिति के लिए सदा तैयार रहना चाहिए। क्या नाम है लड़के?’’
उत्तर फकीरचन्द ने दिया, ‘‘मेरा छोटा भाई है बिहारीलाल।’’
‘‘देखो, मेरा नाम है करोड़ीमल। माता-पिता अति निर्धन थे। अपना मन बहलाने के लिए उन्होंने मेरा नाम करोड़ीमल रख दिया और अब वास्तव में मैं करोड़ीमल हूँ। देश-भर में पाँच कोठियाँ हैं और उन पाँचों में लाखों रुपयों का सामान भरा रहता है। माता-पिता से विनोद में दिये हुए नाम को मैंने पुरुषार्थ से सार्थक कर दिया है।’’
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