उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
|
8 पाठकों को प्रिय 270 पाठक हैं |
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
9
जंगल कटवाना सुगम नहीं था, भारी परिश्रम की आवश्यकता थी। आरम्भ में तो फकीरचन्द का विचार था कि वह स्वयं भी कुल्हाड़ा लेकर काम करेगा, परन्तु एक-दो दिन में ही उसको पता चल गया था कि पेड़ काटने के अतिरिक्त और भी काम है, जो वहाँ करने के लिए हैं और वे काम अधिक आवश्यक है। इसमें उसने लकड़हारे का काम छोड़कर, अब प्रबन्धक का काम करना आरम्भ कर दिया था।
नित्य प्रातःकाल लकड़हारों, आराकशों और मजदूरों को एकचित्र कर जंगल में लाना, वहाँ उनसे नियम से काम कराना, माल को ठीक ढँग से चिरवाना और फिर माधो और चौधरी से हिसाब किताब करना, ये सब काम वह स्वयं करता था।
फकीरचन्द की माँ तीन महीने तक प्रबन्ध ठीक होता देख और वहाँ जीवन सुलभ होने के आशा बाँध लाहौर गई और घर का सामान कुछ बेच, कुछ बाँट और कुछ अपने साथ बाँध, रेल द्वारा बुक करवा वापस देवगढ़ आ गई।
बिहारीलाल गाँव के स्कूल मे भर्ती हो गया था। खाली समय में वह घर का काम-काज करता था। माँ घर का प्रबन्ध करती थी। प्रातःकाल उठ स्नानादि से निवृत्त हो, फकीरचन्द को अल्पाहार करा, काम पर भेज देती थी। तदनन्तर पूजा समाप्त कर बिहारीलाल को खाना खिला स्कूल को तैयार कर देती थी। दोपहर के समय भोजन ले, फकीरचन्द को खिलाने जंगल में जाती थी। उसको खिला बर्तन लेकर वापस आ सूत कातती थी, कपड़े सीती थी और पहिनने के कपड़े धोती थी। सायंकाल बिहारीलाल और फकीरचन्द के आने से पहले भोजन तैयार कर रखती थी।
|