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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘व्यापार बहुत अच्छा काम नहीं है। इसमें पासा उलट भी जाया करता है। लाभ से हानि भी होने लगती है। जहाँ लाभ द्रुत गति से होता है, वहाँ हानि भी द्रुत गति से हो सकती है। केवल एक काम है, जिसके विषय में सबका कहना है कि सर्वश्रेष्ठ है। वह है खेती-बाड़ी।’’

‘‘यह क्यों?’’

‘‘यह इसलिए कि उसमें घाटा कभी होता नहीं और जीवन सुलभ और सुखी रहता हैं।’’

गणित के विषय में फकीरचन्द का विचार था कि वह अच्छी योग्यता रखता है। रही दुकान अथवा खेती-बाड़ी की बात, वह इनमें निर्णय नहीं कर पाता था।

कॉलेजों में प्रवेश का समय निकल गया और वह भर्ती नहीं हुआ। इस अनिश्चिय अवस्था में उसने भारत बीमा कम्पनी में पैंतीस रुपये महीने की नौकरी कर ली। माँ ने पूछा तो उसने बता दिया, ‘‘माँ ! बेकार बैठने से यह अच्छी है। अन्यथा मैं पैंतीस रुपये की नौकरी नहीं करूँगा।’’

वह अपने वेतन के सब रुपये लाकर माँ को दे देता था और माँ उसमें से बहुत-सा भाग उसको अपने कपड़े इत्यादि के लिए वापस कर देती थी। इसपर भी वह केवल कुर्त्ता, पायजामा, जवाहर कोटी के अतिरिक्त और कुछ नहीं पहनता था इस कारण जो कुछ माँ देती थी, उसमें से भी बहुत कुछ बचा लेता था।

यह सन् १९३१ था। एक दिन उसने ट्रिब्यून समाचार-पत्र में एक विज्ञापन पढ़ा। लिखा था ‘युवक, परिश्रमी, उन्नति के अभिलाषी पुरुषों के लिए स्वर्ण अवसर। मध्य-भारत में नदी शील गंगा के किनारे जंगल की भूमि दस वर्ष के लिए बिना लगान के मिल सकती है। दस वर्ष के पश्चात् लगान पाँच रुपया प्रति एकड़ के हिसाब से लिया जाएगा। इस अवसर से लाभ उठाने के लिए प्रार्थियों को राजा साहब ‘ऊँट’ सिविल लाइन्स, झाँसी को लिखना चाहिए।’’

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