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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640
आईएसबीएन :9781613010617

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


मेरा सब्जी-भाजी का उद्यान है; गाय और भैंस हैं। इन सबका मैंने मूल्य नहीं लगाया। इसमें कीमत कम अधिक हो सकती है। अब बताओ, क्या पूछना चाहते हो?’’

रामचन्द्र चकित था। इसपर भी उसने कहा, ‘‘इन सबमें कहीं धोखा है। पूर्ण हिसाब-किताब देखने पर यह बात पता चल जायगी।’’

फकीरचन्द ने हँसते हुए कहा, ‘‘राम भैया ! धोखा-धड़ी में क्या कारण हो सकता है ! किसको धोखा देना है, जो यह गड़बड़ करूँगा?’’

‘‘मैं आज पिताजी को लिख रहा हूँ कि यहाँ काम में किसी प्रकार का भी लाभ नहीं। इसके कारण वे स्वयं यहाँ आकर देख लें। जब वे आयेंगे, तो उनको तुम बता देना कि तुम्हारे बही-खाते कितने ठीक हैं।’’

इस विवाद को बन्द करने के लिए फकीरचन्द की माँ ने अपनी बात कह दी, ‘‘फकीर ! मैं चाहती हूँ कि हिसाब का पूरा चिट्ठा तैयार कर दो। मैं उसको सुनकर एक-दो बातें करना चाहती हूँ।’’

‘‘चिट्ठा तो माँ तैयार हो गया है। मैं इसपर कई दिन से लगा हुआ था। इस वर्ष चालीस हजार रुपये का लाभ हुआ है। इससे कुछ अधिक तो हो सकता है, कम नहीं। अब बताओ, तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘एक तो पिछले वर्ष की भाँति सब कर्मचारियों को कपड़े, भत्ता और भोज देना होगा। दूसरे विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति और देनी चाहिए। तीसरे, कर्मचारियों के बच्चों को पढ़ने में प्रत्येक प्रकार की सुविधा मिलनी चाहिए। उन सबका शुल्क और पुस्तकों का खर्चा तुमको देना होगा। साथ ही जहाँ आवश्यकता हो, उनके कपड़ों और दूध का प्रबन्ध तुम कर दो। और एक बात मैं तुमको अपने लिए करने को भी कहना चाहती हूँ।’’

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