लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611
आईएसबीएन :9781613011102

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


प्रातः उठा तो प्रातः की शीतल समीर में वह दृढ़ संकल्प हो वहाँ रहने का विचार करने लगा। दूर खेत में गोड़ाई करते किसानों के पास जा उनसे फावड़ा माँग लाया और पीपल के पेड़ की बगल में मनमानी भूमि पर निशान लगाकर उस पर अधिकार जमाने का प्रबंध करने लगा। वहाँ से एक कोस के अंतर पर एक गाँव से भुने चने उधार माँग लाया और कुएँ की जगत पर चादर बिछा उन पर भुने चने रख तथा लोटे से पानी निकाल प्याऊ लगा बैठ गया।

मध्याह्न के समय यात्री आकर ठहरने लगे। भुने चने रखे देख कुछ एक-एक पैसा दाम दे मोल ले खाने लगे तो रामकृष्ण लोटा-डोरी से जल निकाल उनको पिला देता। पहले दिन दस पैसे मिले। सायंकाल वह गाँव में गया। वह भटियारे को पाँच पैसे दे पुनः अगले दिन के लिए चने ले कुएँ की जगत पर आ बैठा।

दिन चढ़ने से मध्याह्न तक वह अपने मकान के लिए मिट्टी खोद उसमें कुएँ से निकाले जल से गारा बना एक कोठरी की दीवारें बनाने लगा। मध्याह्न के समय वह कुएँ पर जल पिलाने तथा चने बेचने का काम करता था। वहाँ से कोई भी बड़ी बस्ती पाँच कोस से कम अंतर पर नहीं थी। इस कारण यात्री मध्याह्न के उपरांत ही आने लगते थे और प्यास तथा थकावट से व्याकुल कुएँ पर आते तो एक पैसे के चने और फोकट में जल पीकर तृप्त हो रामकृष्ण को आशिष देते हुए चल देते थे। रामकृष्ण सायं होते पड़ोस के गाँव में जाता और भटियारे को अपनी कमाई का आधा भाग देकर अगले दिन के लिए चने ले आता।

छः मास में वह अपने हाथ से ही एक कमरा बनाने में सफल हो गया। उसके पास बीस रुपये के लगभग जमा हो गए और उसने कमरे में भट्टी बना चने भूनने का प्रबंध स्वयं कर लिया।

छः महीने और लगे जब उसकी दुकान यात्रियों में विख्यात होने लगी। उसने अपने कमरे के साथ एक दूसरा कमरा भी बना लिया। कहावत है कि स्थान अनुकूल हो तो प्राणी उसमें रहने के लिए स्वतः ही आ जाते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book