लोगों की राय

उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610
आईएसबीएन :9781613010891

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

350 पाठक हैं

मैं न मानूँ...


दूसरा लड़का इस पर कुछ कहने ही वाला था कि भगवानदास आगे निकल गया। वह उसके पास जा पहुँचा, जिसके पास वह जाना चाहता था। ‘‘नूरुद्दीन!’’ उसने उसकी बाँह-में-बाँह डाल कर पूछा, ‘‘कैसा रहा आज का पर्चा?’’

‘‘कुछ न पूछो, दोस्त! चलो चलें।’’

दोनों घर की ओर चल पड़े। उन दिनों एक दिन में दो पर्चे हुआ करते थे। छः दिन में पूर्ण परीक्षा समाप्त हो जाया करती थी। परीक्षा का आज पाँचवाँ दिन था। गणित की परीक्षा का दिन था और यह पर्चा अरिथमैटिक तथा ऐलजैबरा का था। परीक्षा प्रातः सात बजे से आरम्भ हुई थी और दस बजे पर्चे ले लिए गए थे। सायं तीन बजे दूसरा पर्चा मिलने वाला था। घर दो मील के अन्तर पर था। जाना, भोजन करना, विश्राम कर जल्दी-जल्दी ज्योमेट्री की कुछ थ्योरमों पर दृष्टि डालना और फिर पौने तीन बजे वापस हॉल के दरवाजे पर उपस्थित होना था। अतः वह चल पड़े। मार्ग में भगवानदास ने कहा, ‘‘आज का यह पर्चा तो तुम्हारा कमजोर था ही। फिर भी कितने सवाल किए हैं?’’

‘‘भई, किए तो छः हैं, मगर ठीक तो खुदा जाने एक भी है अथवा नहीं।’’

‘‘आठ करने थे। छः किए और भला बताओ, क्या-क्या जवाब है?’’

‘मैं लिखकर नहीं लाया।’’

‘‘तुम भी बुद्धू हो। तीन भी ठीक किए होते तो दिल को तसल्ली हो जाती।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book