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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘पुरोहितजी ने?’’

‘‘नहीं, रावसाहब हिम्मतसिंहजी ने। वे अमेरिका गए हुए थे, वहीं से लाए है। वहाँ का इसका मूल्य तीन हज़ार डालर है। उसके ऊपर आयात-कर आदि अन्य अनेक खर्चों में दस हज़ार से अधिक लग गए हैं। लगभग तीस हज़ार में उन्हें यह मोटर पड़ी है।’’

‘‘क्या, सरकार ने इसकी स्वीकृति दे दी थी?’’

‘‘नहीं, आज से लगभग बीस वर्ष पूर्व राव साहब ने फिलाडेल्फिया में एक बहुत बड़ा मकान खरीदा था। उसी समय उन्होंने उस खरीद को यहाँ के आयकर विभाग को बता दिया था और प्रतिवर्ष उस मकान की आय भी वे आयकर विभाग को दिखाते रहे हैं। यह मोटर और कुछ अन्य सामग्री उसी आय में से है।’’

‘‘परन्तु वे आप लोगों के विवाह पर नहीं आए?’’

‘‘सुमति की माँ का देहान्त हो जाने पर उन्होंने एक अन्य स्त्री से विवाह कर लिया था। उसका राव साहब पर बहुत प्रभाव है और सुमति को देखकर वह जला करती है।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘सम्भवतया इसलिए कि सुमति अपनी माँ की भाँति ही सुन्दर है। उसे भय लगा रहता है कि यदि यह अपने पिता के समीप रहेगी तो उन्हें अपनी माँ का स्मरण कराती रहेगी; इससे वे उस-जैसी साधारण रूपरेखा वाली स्त्री से उतना प्यार नहीं कर पाएँगे जितना कि वे अब करते हैं।’’

‘‘पुरोहितजी की पत्नी सुमति को बहुत प्यार करती है। इसलिए इसके पिताजी और पुरोहितजी ने यही ठीक समझा है कि इसे उसकी माँ की दृष्टि से दूर रखा जाए। साथ ही राव साहब विवाह के समय अमेरिका में थे। दो वर्ष के प्रवास के बाद पिछले मास ही वे यहाँ लौटे हैं।’’

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