उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
5
रविवार को सुदर्शन तो कॉलेज नहीं जाना था। भोजनोपरान्त कुछ विश्राम कर दोनों प्रो० चन्द्रावरकर के घर जा पहुँचे।
जब से नलिनी आई थी, वह अपने भाई और भाभी को देखती थी तो उनको गालियाँ देने लगती थी। इससे श्रीपति के मस्तिष्क पर भारी दबाव पड़ रहा था। घर में बैठकर वह अपना स्वाध्याय नहीं कर सकता था। इसलिए आजकल वह दिन के समय कॉलेज के पुस्तकालय में जा बैठता था।
सुदर्शन और सुमति जब वहाँ पहुँचे तो वह आज भी घर पर नहीं था। कात्यायिनी उनको अपने बैठक के कमरे में मिली। उन्होंने जब उसे बताया कि वे नलिनी से मिलने के लिए आए हैं तो उसने उन्हें अपने घर की सारी स्थिति बता दी। उसने कहा, ‘‘प्रोफेसर साहब तो कॉलेज में जाकर ही अपना पठन-कार्य करते हैं। घर का वातावरण बड़ा अशान्त हो गया है। माँजी हरिद्वार चली गई हैं। अपनी लड़की का दुःख वे देख नहीं सकीं। वे कहती थीं, अब उनका संन्यास लेने का समय आ गया है और इस घर का वातावरण उसमें बाधक बन रहा है।’’
‘‘तो आप अकेली घर पर हैं?’’
‘‘हाँ, और बच्चे हैं।’’
‘‘सुना है, नलिनी आपको गालियाँ भी देती है?’’
‘‘वह भी ठीक ही है। मैंने ही उसके साथ विवाह का प्रस्ताव किया था। जैसा वह निकला है, मैं उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती।’’
|