उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘भाभी! तुम्हीं इसके लिए मेरी गुरु बन जाओ।’’
‘‘मैं स्वयं को इस योग्य नहीं समझती। हाँ, मेरे पुरोहित पिताजी मेरा पथ-प्रदर्शन करते रहे है; कदाचित् तुम्हारी भी सहायता कर सकें।’’
अगले दिन प्रातः काल अल्पाहार करते समय निष्ठा ने अपनी माँ को बताया, ‘‘माँ! मैं विवाह नहीं करूँगी।’’
निष्ठा का पिता कश्मीरीलाल भी अल्पाहार कर रहा था। उसने बात सुनी तो पूछने लगा, ‘‘क्यो, रुपए-पैसों की बात से डर गई हो क्या?’’
‘‘पिताजी! ये तो उस रोग के लक्षण-मात्र थे, जिसके वे रोगी हैं। मैं उस रोग-ग्रस्त परिवार में जाना नहीं चाहती।’’
‘‘रोग! क्या रोग है उनको?’’
सुदर्शन ने बात समझाते हुए कहा, ‘‘पिताजी! इसका कहना है कि उनमें दोष है, कोई बीमारी नहीं। किन्तु वह दोष तो घृणित-से-घृणित बीमारी से भी भयंकर है।’’
‘‘तो किसी अन्य स्थान पर विचार कर लिया जावेगा।’’
‘‘मैं इस विषय में माताजी को बता दूँगी।’’
माता-पिता ने समझा कि वह स्वयं किसी अपने मनपसन्द के वर का पता देने वाली है। किन्तु सुमति और उसके द्वारा डॉक्टर सुदर्शन को विदित था कि वह विवाह न करने की बात कहने वाली है, तो भी उस समय दोनों इस विषय पर चुप ही रहे।
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