उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘मैं नहीं जानती कि कोई जीवित प्राणी भी इसका अधिकारी हो सकता है। उसको ढूँढ़ा जा सकता है। हाँ, एक पुस्तक है, तुम संस्कृत जानती हो इस कारण वह तुम्हें उपलब्ध है। वह है ‘कठोपनिषद्’। उसमें नचिकेता नाम के बालक को यम द्वारा दिया गया उपदेश लिखा हुआ है। वह उपदेश इसी विषय में था। एक वाक्य में वह कहा जाए तो इस प्रकार होगा–
‘‘श्रेय और प्रेय दो विभिन्न मार्ग है, दोनों के प्रयोजन भी विभिन्न हैं परन्तु दोनों मनुष्यों को बाँधकर ले जाते हैं। श्रेय शुभ परिणाम वाला होता है और प्रेय अशुभ। इस पुस्तक में दोनों मार्गों का वर्णन भी है।’’
‘‘भाभी! मैं उस पुस्तक को पढ़ूँगी और उसका अभिप्राय समझने का यत्न करूँगी। उपनिषदों का अर्थ लगाना कुछ कठिन तो होता है।’’
‘‘अर्थ लगाना कठिन नहीं। हाँ, उनके भाव समझने में कठिनाई होती है। उन भावों को समझने के लिए चिन्तन की आवश्यकता होती है। इन रहस्यमयी पुस्तकों के यथार्थ भाव समझने के लिए जितना चिन्तन किया जावेगा उतना ही सत्यता के निकट पहुँचने में सुविधा होगी।’’
निष्ठा गम्भीर बनी रही। सुमति ने उसके पथ-प्रदर्शन के लिए कहा, ‘‘निष्ठा बहन! मैं तो इस पथ की पथिक नहीं हूँ। किन्तु गुरुजनों के मुख से मैंने सुना है कि इस पथ में अनेक बाधाएँ, प्रलोभन और काँटे हैं। यह पथ बीहड़ वन में से होकर जाता है और अधिकतर लोग पथ भूलकर आगे जाने की अपेक्षा पीछे मुड़ जाया करते है। अपने बड़ों से मार्गदर्शन कराकर सोत्साह आगे बढ़ना चाहिए।
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