उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची तो हो नहीं, सम्मति तो तुम्हारी ही चलेगी।’’
‘‘तो मेरे मन की प्रतिक्रिया यह है कि मैं विवाह ही नहीं करूँगी।’’
‘‘क्या?’’
‘‘भाभी! तुमने कहा था न कि विवाह न करने से कुछ अभाव उत्पन्न हो जाते हैं, जो घातक भी सिद्ध हो सकते हैं।’’
‘‘मैं आज के विचार से इस परिणाम पर पहुँची हूँ कि वे अभाव तो किन्हीं अन्य कर्तव्यों से भी भरे जा सकते हैं। तुम स्वयं भी तो अपने अभाव को अपने बच्चे में प्रेम से भर रही हो। क्या मैं गलत कह रही हूँ?’’
‘‘कह तो ठीक रही हो, परन्तु मेरे विषय में तो यह अस्थायी स्थिति है। कुछ समय के बाद इस अभाव को स्थायी साधनों से पुनः भर लूँगी।’’
‘‘जो अस्थायी रूप में हो सकता है वह स्थायी भी हो सकता है।’’
सुमति गम्भीर हो गई। उसने विचारकर कहा, ‘‘निष्ठा बहन! इस अभाव को पूर्ण करने के लिए एक उपाय है। परन्तु उसे बताने का अधिकार मुझे नहीं है।’’
‘‘तो किसे है?’’
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