उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘हाँ, बहुत परिश्रम करना पड़ा प्रतीत होता है।’’ नलिनी ने कहा। वह भी उसके संगीत-समारोह में उपस्थित थी।
निष्ठा गई और अवसर देख नलिनी ने कह दिया, ‘‘मैं समझती हूँ कि भैया और भाभी का वियोग-काल अब पूर्ण हो गया है। क्यों भाभी?’’
‘‘किस ज्योतिषी ने तुम्हें इस विषय में बताया है?’’
‘‘डॉक्टर साहब की माताजी ने।’’
‘‘उन्होंने भविष्यवाणी तो की नहीं, केवल सुझाव दिया है।’’
‘‘क्या बड़ों को सुझाव की आज्ञा नहीं?’’
डॉक्टर ने भी कहा, ‘‘तो क्या इन विषयों में भी कोई स्पष्ट आज्ञा दिया करता है?’’
‘‘हाँ, पति तो पत्नी को आज्ञा दे ही सकता है।’’ नलिनी ने कह दिया।
‘‘क्या पत्नी पति को कुछ नहीं कह सकती?’’ सुमति का प्रश्न था।
‘‘पत्नी इसलिए आज्ञा नहीं दे सकती कि परमात्मा ने आज्ञा के अतिरिक्त उसको कई अन्य साधन दे रखे हैं। रूप-लावण्य, मधुर-भाषण, श्रृंगार करने की योग्यता और ऐसी ही अन्य अनेक बातें हैं।’’
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