उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘डॉक्टर साहब! मैं तो अपने में किसी भी प्रकार का दोष नहीं देखता। फिर भी यदि आप इसमें किसी प्रकार से विश्वविद्यालय के वातावरण को बिगड़ने की सम्भावना समझते हैं तो आप मुझसे व्याग-पत्र की माँग कर सकते हैं। मैं अपने घर की स्थिति को बदलने में कोई कारण नहीं समझता। यहाँ की स्थिति का अनुमान आप लगा सकते हैं।’’
इसके बाद विश्वविद्यालय और कॉलेज में बात धीरे-धीरे शान्त हो गई। इस पूर्ण समय में सुदर्शन और श्रीपति ने सद्व्यवहार पूर्ववत् बना रहा। प्रत्युत दोनों में पहले से अधिक मेल-मुलाकात हो गई थी। जब सुमति के लड़के के नामकरण-संस्कार का समय आया तो सुमति ने अपनी सास से पूछ लिया, ‘‘घर में एक और भी बच्चा है। उसका भी तो अब नाम रख देना चाहिए।’’
‘‘मैं विचार कर रही थी।’’ डॉक्टर की माँ ने कह दिया, ‘‘कि बच्चे की माँ और मामा इस विषय में बात करेंगे। परन्तु उन्होंने इसकी कभी इच्छा प्रकट की नहीं और उनके रीति-रिवाज की बात भी तो मैं जानती नहीं।’’
‘‘रीति-रिवाज, माताजी कुछ भी हों। नाम तो रखना ही है। जब आप अपने पौत्र का नामकरण करने के लिए पुरोहित को बुलाएँगी तो उसे कह दीजिएगा कि उसका भी नाम रख दें।’’
‘‘अच्छा, तुम नलिनी से बात कर लेना। यदि उसे किसी प्रकार की आपत्ति हो तो वह बता देगी, अन्यथा हम ऐसा कर देंगे।’’
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