उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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सुमति को दो मास का गर्भ था। वह अपने भीतर एक विचित्र प्रकार की हलचल अनुभव कर रही थी। शरीर में सुस्ती, आराम करने की इच्छा, अपच और सबसे बड़ी बात थी पति-संगति में अरुचि। वह इन सबको स्वाभाविक मानती थी। इस कारण शान्ति और धैर्य से इन लक्षणों को उन्नत होते देख रही थी। प्रातःकाल वह अपने पति से पहले उठ जाया करती थी। वह उसके लिए चाय तो बना देती थी परन्तु पूर्व की भाँति स्वयं चाय नहीं पिया करती थी।
डॉ० सुदर्शन ने एक दिन उससे पूछा, ‘‘तुम चाय नहीं पी रही हो क्या?’’
‘‘नहीं, पीने पर वमन हो जाने की संभावना है?’’
‘‘भूखे रहकर भी कब तक निर्वाह होगा?’’
‘‘अधिक कष्ट बारह बजे मध्याह्न तक रहता है। उसके बाद मैं कुछ फल खा लेती हूँ। तीसरे पहर कुछ भोजन भी कर लेती हूँ। रात को तो मैं सब के साथ खा ही लिया करती हूँ।’’
निष्ठा अपने विवाह कि स्वीकृति नहीं दे रही थी। इसका कारण यही समझा जा रहा था कि पढ़ाई में उसकी रुचि होने के कारण ही वह इसकी स्वीकृति नहीं दे रही है। सुमति को इसका ज्ञान था कि पढ़ाई की अपेक्षा संगीत में उसकी रुचि अधिक थी। परीक्षा के दिनों में भी वह प्रातः ढाई-तीन घण्टे संगीत का अभ्यास कर लिया करती थी। सप्ताह में दो बार वह संगीत-भवन में सीखने जाया करती थी।
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