उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
चीतू ने बताया, ‘‘मैं वचन दे आया हूँ कि दो दिन के बाद पुनः वार्तालाप होगा। तब तक सचिव भी नाग औरतों को लाने का यत्न करेगा।’’
पंचों ने कहा, ‘‘उसके कथन का विश्वास नहीं किया जा सकता। उसने यह दो दिन की अवधि तो अपनी सेना को यहाँ एकत्रित करने के लिए माँगी है। अभी तो अंग्रेज़ी सेना आई नहीं, किन्तु हमारी सेना लड़ने के लिए तैयार खड़ी है।’’
‘‘परन्तु इस समय आक्रमण से क्या अन्तिम विजय हो जाएगी? हम इस सचिव को मार देंगे और उसके साथ दो-तीन सौ सैनिकों को मार पाएँगे। परन्तु इतने से ही विजय तो नहीं मिल जाएगी। न ही इससे हमारी स्त्रियाँ छूट जाएँगी। फिर तो अंग्रेज़ी मुख्यसेना आ जाएगी। उनके पास बहुत बढ़िया शस्त्रास्त्र हैं। अतः हमारी पचास सहस्त्र नाग स्त्रियाँ विधवा हो जाएँगी, फिर भी लाभ कुछ नहीं होगा।’’
पंच तो मद्य पिए हुए थे और अपनी अपूर्व सैनिक शक्ति पर उन्हें भरोसा था। चीतू की बात उनकी समझ में नहीं आई। चीतू ने कह दिया, ‘‘हमें अपने वचन का पालन करना चाहिए। दो दिन की प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। हमको एक महान देश के सचिव का विश्वास करना चाहिए।’’
वचन की बात सुनकर पंच चुप हो गए। किन्तु सबके मन में यह भय समाया हुआ था कि उनका नेता भूल कर आया है। घंटे-घंटे बाद समाचार आते थे कि तोपों और बन्दूकों के साथ अंग्रेज़-सेना उनकी ओर बढ़ती चली आ रही है।
अगले दिन पंचायत की बैठक हुई और उसमें चीतू को बैठने नहीं दिया गया। यथार्थ में चीतू पंचायत का बन्दी बन गया था। आज की पंचायत ने निर्णय कर दिया कि युद्ध अवश्यम्भावी है। अतः युद्ध की तैयारी कर दी जाए।
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