उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘आपके वचन की बात मैं अपनी पंचायत में रखूँगा। यदि पंचायत को विश्वास हो गया तो हम उनको छोड़ देंगे।’’
‘‘सब पंचायत को यहाँ ले आओ। मैं उनको समझा दूँगा। देखो, यदि अड़तालीस घंटे के अन्दर ये औरते नहीं छूटी तो फिर युद्ध होगा और तुम्हारे कबीले वाले सब मार डाले जाएँगे। सुना है, पचास हज़ार आदमी एकत्रित हुए हैं, वे सब चुटकियों में समाप्त कर दिए जाएँगे। पचास हज़ार औरतें विधवा हो जाएँगी। वे सब-की-सब पकड़कर क्रिस्तानों के हवाले कर दी जाएँगी।
चीतू इसको सुनकर काँप उठा। फिर भी उसने कहा, ‘‘हम मरने से नहीं डरते। हाँ, औरतों की बात अवश्य है। मगर हमारे स्वर्ग में रहने वाले देवता उनकी रक्षा करेंगे। फिर भी मैं समझता हूँ कि हमारी औरतों को वापस कर दिया जाए। हम आपकी औरतें छोड़ देंगे।’’
इस युवक की बात से सचिव प्रभावित हुआ था। उसने कहा, ‘‘देखो सरपंच। यह रक्तचाप मत कराओ। जैसे तुम्हारी औरतें तुमको प्यारी हैं वैसे ही अंग्रेज़ औरतें अंग्रेज़ों की हैं। इसलिए लड़ाई से नहीं, सुलह से काम होना चाहिए। तुम यहाँ पंचायत को बुलाओ। मैं उन औरतों की खोज करता हूँ। जहाँ भी मिलेंगी, लाने का यत्न करूँगा। यदि उन्होंने तुम्हारे पास जाना स्वीकार किया तो तुम्हें मिल जाएँगी।’’
दो दिन की अवधि दी गई। सचिव के शिविर में पंचायत होने का निर्णय हुआ है। सचिव ने तीव्रगामी अश्वों पर सोना और बिन्दू को लाने के लिए सैनिक भेजे। विवश जनरल को सोना को शिविर में भेजना पड़ा। बिन्दू का पूर्ण इतिहास कि वह अपने प्रेमी के साथ इंग्लैंड गई है, उसके पास लिखा हुआ आ गया।
चीतू जब अपने सजातीयों की पंचायत में आया तो उसको अपने साथियों को समझाने में बहुत कठिनाई अनुभव हुई। पंचों का कहना था कि भवानी उनके पक्ष में है। अंग्रेज़ उनकी शक्ति देख डर गया है। आज रात ही आक्रमण कर देना चाहिए।
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