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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

7

उक्त घटना को छः मास व्यतीत हो चुके थे। धनिक चौधरी के नाम से विख्यात हो गया था। वह हस्पताल में कम्पाउण्डर के स्थान पर नियुक्त था और चोटों की तथा घावों की चिकित्सा करता था। उसकी चिकित्सा से डॉक्टर सर्वथा सन्तुष्ट था। वह अब साहब के पतलून-कोट तथा अन्य उतरे हुए कपड़े पहनता था। उसे इस समय चालीस रुपए मासिक वेतन मिलता था। सिपाहियों में वह बहुत ही प्रख्यात हो रहा था।

सोना सोफी की सेवा-टहल करती थी। सोफी की ‘हॉबी’ थी चित्र बनाना और वास्तव में वह सोना को इसी कारण अपने पास रखे हुए थी। उसने सोना को ‘मॉडल’ बना कई चित्र बनाए। उसकी लालसा थी कि वह उसका ‘न्यूड’ चित्र बनाए। इसके लिए सोना को तैयार करने में बहुत दिन लग गये। इसके लिए वह तब तैयार हुई जब सोफी ने उसको अपनी एलबम में अपना नग्न चित्र दिखाया।

ज्यों-ज्यों चित्र बनता गया, सोफी को भी अपने चित्र में सौन्दर्य देख अपने पर गर्व होता गया। जब सोना चित्र के लिए दो घण्टे बैठ कपड़े पहन अपने ‘आउट-हाउस’ में चली जाती तो माइकल उस चित्र को देखने के लिए आ जाता और सोना के सौन्दर्य को देख मुग्ध खड़ा रह जाता।

सोना ने चौधरी को भी बताया था कि जनरल की पत्नी उससे क्या काम ले रही है। एक दिन सोना ने बताया, ‘चित्र लगभग तैयार हो गया है।’’

‘‘कैसा है?’’ चौधरी ने पूछा।

‘‘बहुत सुन्दर है। मुझे तो अपने से भी अधिक सुन्दर दिखाई दिया है।’’

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