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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘उसको यहाँ बुला लीजिए।’’

डॉक्टर ने हस्पताल को टेलीफोन किया। जब तक उन्होंने चाय समाप्त की, हस्पताल से टाँग पर प्लास्टर लगे हुए उस सिपाही को ले आया गया। उसको उसी कमरे में लिटाया गया, जिसमें सोना की चिकित्सा हो रही थी।

फिर धनिक को वहाँ बुलाया गया। माइकल ने अर्दली द्वारा उससे कहा कि यदि इस सिपाही की टाँग वह ठीक कर दे तो उसको बीस रुपये पुरस्कार मिलेगा।

प्लास्टर को चीरकर उतारा गया। धनिक ने टाँग को देखा और उसके अनुसार दवा बनाकर लगानी आरम्भ की। डॉक्टर भी इस समय उसका कृत्य देखने के लिए वहीं बैठा रहा। एक घण्टे के उपचार के बाद वह सिपाही अपनी टाँग पर खड़ा हो गया। जब वह सिपाही उस कमरे से निकल बरामदे में इधर-उधर चलने लगा तो माइकल ने सिपाही की पीठ ठोंकते हुए कहा, ‘‘कल प्रातःकाल आकर दिखा जाना।’’

सिपाही ने बड़े साहब को सलाम किया और पैदल ही कोठी से बाहर हो गया। इस समय माइकल ने अपनी जेब से बीस रुपए निकालकर धनिक को देने चाहे, तो उसने कह दिया, ‘‘मुझे तो मेम साहब ने नौकर रख लिया है। इस कारण मेरा मेहनताना मेरे वेतन में ही आ जाएगा।’’

अर्दली ने जब माइकल को उसका कथन बताया तो वह हँस पड़ा और उसने अपनी पत्नी को बीस रुपये देते हुए कहा, ‘‘ठीक है, यह तुम ही इसको दे देना।

सोफी ने रुपये रख लिये।

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