उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘भागकर कहाँ जाएँगे?’’
‘‘पादरियों की बस्ती में।’’
‘‘मन नहीं करता।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘वे गौ-मांस खाते हैं।’’
‘‘हम नहीं खाएँगे। कोई ज़बरदस्ती तो खिलाता नहीं।’’
‘‘कैसे कहते हो?’’
‘‘ये पादरी ही बताते हैं।’’
सोना चुप रह गई। बड़ौज रात होने तक नहीं आया। रात को प्रातः की पंचायत का सरपंच आया और धनिक से पूछने लगा, ‘‘चौधरी! दण्ड का रुपया कब तक दोगे?’’
‘‘एक-दो दिन में दे दूँगा।’’
‘‘हमको कल चाहिए।’’
‘‘यत्न करूँगा कि कल तक दे दूँ।’’
‘‘बड़ौज कहाँ गया है?’’
‘‘लुमडिंग के दुकानदार से रुपया लेने के लिए गया है।’’
‘‘परन्तु बिन्दू भी तो गायब है।’’
‘‘मुझे पता नहीं है।’’
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