उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘तो यह बड़ौज है?’ वह अपने मन से पूछ रही थी। ‘निश्चय ही वही है। तो वह यहाँ क्या कर रहा है?–मुझको देखने के लिए आया है।...तो उसके पति का यह संदेह सत्य है कि वह उसको ले जाने के लिए आया है।’
ज्यों-ज्यों वह विचार करती थी त्यों-त्यों उसको बड़ौज के आने का कारण स्पष्ट हो जाता था। फिर एकाएक वह अपने पलंग पर से उठी और अपने पति की ओर देखने लगी। वह सो रहा था। वह कपड़े पहन कमरे से बाहर निकल आई। बाहर कोठी के लॉन में बच्चे बर्फ के गोले बना रहे थे। बिन्दू वहाँ आई और अपनी बड़ी लड़की सैली को साथ ले नौकरानी से बोली, ‘‘जब साहब उठें उनसे कहना कि मैं उस डाकबंगले पर हूँ, वे वहाँ आ जाएँ। चाय हम वहीं पर पिएँगे।’’
मार्ग में जाते हुए सैली ने पूछा, ‘‘मम्मी। किधर जा रही हो?’’
‘‘उस आदमी से बात करने जिनसे तुमके ‘किस’ किया था।’’
सैली हँस पड़ी। उसने पूछा, ‘‘वह कौन है?’’
‘‘एक मित्र है।’’
बड़ौज तो डाकबंगले के बरामदे में बैठा धूप सेंक रहा था। वह बिन्दू को इस प्रकार अकेली आती देख चकित रह गया। उसकी समझ में यहीं आया कि वह उसे पहचान गई है और उससे पृथक् बात करने के लिए आई है। इस कारण वह प्रसन्नता में उछलकर उठा और बिन्दू का स्वागत करने के लिए आगे बढ़ा, ‘‘आइए मिसेज़ स्टीवनसन! बहुत कृपा की आपने।
इतना कह उसने सैली को गोद में उठाकर पुनः उसका मुख चूम लिया। बिन्दू को ऐसा अनुभव होने लगा मानो वह उसका ही मुख चूम रहा हो। इससे उसने कुछ डाँट के भाव में मुस्कराते हुए कहा, ‘‘डोण्ट स्प्वाइल दि चाइल्ड।’’
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