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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘मैं तब की बात नहीं कर रहा। मैं तो आज की बात कर रहा हूँ। इसके लिखने में जो भी कारण रहे थे, अब तो वे नहीं हैं।’’

‘‘हैं तो, यह देखिए!’’ इस समय सोना उसके लिए चाय बनाकर ले आई थी। सोफी ने उसकी ओर ही संकेत किया था।

‘‘मुझे विदित था कि यह यहाँ है। परन्तु मैं इसको लेने के लिए नहीं आया। मैं तो तुमको साथ ले चलने के लिए आया हूँ।’’

‘‘तो कोई अन्य मिल गई होगी।’’

‘‘नही, मैं तुम्हारी सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि जब से तुम आई हो, मैंने औरत का मुख तक नहीं देखा।’’

सोफी उसका मुख देखती रही। माइकल आगे बोला, ‘‘मुझे तुम्हारे यहाँ के कार्य के विषय में भी सब ज्ञात है। डॉक्टर ने तुम्हारी शिकायत की थी, वह मेरे पास जाँच के लिए आई तो मैंने धनिक की सफाई दे दी और फिर यहाँ के विषय की रिपोर्ट भिजवा दी। अब फादर जॉन ने तुम्हारे कार्य की रिपोर्ट अमेरिका तथा यहाँ के विभागीय मिशन को भेज दी है। मिशन ने सरकार को लिखा है और मुझे मेरे अधिकारियों ने कहा है कि मैं तुम्हें लेकर कराची चला जाएँ। वहाँ से मुझे बसरा जाने के लिए कहा जाएगा। पुनः हिन्दुस्तान में आने का अवसर नहीं मिलेगा। इसलिए अपना सब कुछ समेटकर ले जा रहा हूँ और उस सब कुछ में तुम सबसे मूल्यवान हो।’’

‘‘इस मुल्य का ज्ञान कब से हुआ है?’’

‘‘जब से तुम मुझे छोड़कर आई हो। मैं अपने किए पर पश्चात्ताप करता हूँ।’’

‘‘मुझे विचार करने के लिए अवसर चाहिए।’’

‘‘हाँ, रात के समय तो इस प्रदेश में यात्रा हो नहीं सकती। प्रातःकाल तक तुम तैयार हो जाओ। सोना और उसके पति को यही रहने दो।’’

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