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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


सोफी हँस पड़ी। उसने कहा, ‘‘डॉक्टर, यू आर एन ईडियट। मैं अभी तुम्हारे अफसरों को लिखती हूँ कि तुम्हें वापस बुला लिया जाए। कहाँ है वह अन्धा आदमी, जिसने वह दवा बताई थी।’’

डॉक्टर के माथे पर त्यौरी चढ़ गई। उसने कहा, ‘‘मैं तब तक इस अस्पताल में काम नहीं करूँगा जब तक कि तुम हमारे काम में हस्तक्षेप करना बन्द नहीं करोगी।’’

‘‘वेरी गुड। यू गेट अवे फ्रॉम हियर। आइ एम राइटिंग टू एथॉरिटीज़!’’

‘‘परन्तु तुम कौन हो?’’

‘‘इस विभाग के मिशन की प्रबन्धकर्त्री समिति की सदस्या हूँ। मैं आज्ञा देती हूँ कि तुम यहाँ से चले जाओ।’’

डॉक्टर वार्डन का मुख देख रहा था। वार्डन के माथे पर पसीने की बूँदें झलकने लगी थीं। इस झगड़े में वह मिशन का कल्याण नहीं देखता था। परन्तु सोफी अपने निश्चय पर डटी हुई थी। यों तो वार्डन और पादरी दोनों को ही आज्ञा देने की क्षमता उसमें थी, फिर भी वे कुछ जाहिल लोगों की सहायता के लिए मिलने वाली सहायता का तिरस्कार करना नहीं चाहते थे। इससे वार्डन ने डॉक्टर का क्रोध शान्त करने के लिए उसकी बाँह में बाँह डाली और उसे अस्पताल से बाहर ले गया।

सोफी और सोना उस अंधे वनवासी को ढूँढ़ने के लिए चल पड़े। पादरी जॉन उनके साथ ही था। उसने साथ-साथ चलते हुए बताया, ‘‘मैं उसे जानता हूँ, वह कैम्प संख्या एक सौ तीन में है। उसने मुझे कहकर अपने कैम्प वालों का डॉक्टर से चोरी-चोरी इलाज किया है और वे सब-के-सब ठीक हो गए हैं। वे जाना चाहते हैं, परन्तु मैं अपनी पवित्र पुस्तक में से उन्हें उपदेश सुनाने के लिए रोके हुए हूँ। उनको अच्छा खाने-पीने को मिल रहा है। इस कारण भी वे रुके हुए हैं।’’

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