उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘इससे मैं यह समझी हूँ कि ये सत्य अर्थों में ईश्वर-भक्त हो रहे हैं। पहले ये अपने को ईश्वर-भक्त मानते थे, इस पर भी नास्तिक ही थे। अब इनको ईश्वरीय नियमों का ज्ञान हो रहा प्रतीत होता है।’’
रविशंकर समझ नहीं रहा था कि वह अब आस्तिक हो रहा है अथवा पहले ऐसा था। इस कारण वह चुपचाप लड़की की युक्ति सुनता रहा।
बात उमाशंकर ने समाप्त कर दी, ‘‘मैं समझता हूँ कि कमला के पिता की स्वीकृति लिखित जब तक हमारे हाथ में नहीं आती, तब तक विवाह नहीं होगा। उसके लिए हमें पन्द्रह जनवरी को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।’’
परन्तु अगले ही दिन जेल से एक चिट्ठी मुहम्मद यासीन के नाम की रजिस्टर्ड डाक से आई। वह चिट्ठी अब्दुल हमीद की थी। उसमें लिखा था–
‘‘पिछले पन्द्रह दिन जेल ने मेरी आँखें खोल दी हैं। मैं समझ गया हूँ कि मैं गलत लोगों को अपना नेता मान रहा था। इस बात का पूरा वृत्तान्त तो कभी जेल से बाहर आकर बताऊँगा। अभी यह लिख रहा हूँ कि मैंने तुम्हारी अम्मी सालिहा को एक चिट्ठी दी है, जिसमें यह कहा है कि नगीना अपनी मर्जी से शादी कर सकती है। यही तुम्हें इस चिट्ठी में लिख रहा हूँ। मैं समझता हूँ कि उसने डेढ़ साल से ज्यादा इन्तजार की है, यह कम नहीं। तुम उसे कह दो कि मुझे अब कोई ऐतराज नहीं हो सकता।’’
ज्ञानस्वरूप ने वह पत्र वकील को दिखाया तो उसने राय दी कि एक कैदी का जेल से कुछ लिखकर भेज देना तब तक प्रमाण नहीं हो सकता, जब तक वह अपने बयान मैजिस्ट्रेट के सामने न दे। इसलिए इस चिट्ठी की बिना पर अदालत में उनको बुलाकर बयान लेने चाहिए।
वकील से राय कर एक अर्जी सब-जज की अदालत में की गई इस पर अब्दुल हमीद कोर्ट में बुलाया गया और उसके हलफिया बयान हुआ। उन बयानों के दूसरे दिन उमाशंकर और कमला की शादी हो गई।
प्रज्ञा का कहना था कि यह आस्तिकता की महान् विजय है।
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