उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो दादा, बात करो। मैं इन्तजार कर रहा हूँ।’’
साढ़े दस बजे उमाशंकर का टेलीफोन आया। उसने ज्ञानस्वरूप को कुछ बताया तो ज्ञानस्वरूप ने टेलीफोन बन्द कर प्रज्ञा और अम्मी को बताया, ‘‘अब्बाजान ने किसी किस्म की रिपोर्ट मेरे खिलाफ पार्लियामेण्ट स्ट्रीट के थाने में लिखाकर मेरे वारण्ट निकलवा दिये हैं। दादा थानेदार को लेकर वारण्ट निकालनेवाले मैजिस्ट्रेट से बात कर पार्लियमेण्ट स्ट्रीट वारण्ट की तामील रुकवाने गए हैं। दादा ने यह भी कहा है कि वह प्रातः छः बजे ही किसी से मिलने जाएगा और मैजिस्ट्रेट की अदालत की कार्रवाई रुकवा देगा।’’
रात-भर किसी को नींद नहीं आई। कमला समझ रही ती कि यह सब झगड़ा उसकी वजह से है। इससे वह बहुत परेशान थी। रात-भर वह भूमि पर पलथी मार परमात्मा को स्मरण करती रही।
सोये तो प्रज्ञा और ज्ञानस्वरूप भी नहीं थे, परन्तु वे समय पर स्नानादि कर जब अपने पूजा के कमरे में आये तो कमला और सरस्वती वहाँ पहले ही बैठी थीं। कमला अपनी वीणा लिए हुए थी।
ज्ञानस्वरूप उनको देख हँस पड़ा, ‘‘अम्मी! क्या हो रहा है?’’
‘‘तो तुम आ गए हो?’’ सरस्वती ने कहा, ‘‘मैंने ही इसे आने के लिए कहा है। इसका एक गाना मुझे इस समय याद आया तो मैंने इससे कहा, यह लाकर भाभी को सुनाओ। आज यही हमारी पूजा होगी।’’
ज्ञानस्वरूप ने भी अपने मन की अवस्था में यही ठीक समझा। प्राणायाम इत्यादि छोड़ उसने कलमा को कहा, ‘‘हाँ, तो सुनाओ! जरा मैं भी देखूँ कि तुमने कहाँ तक इस विद्या में उन्नति की है।’’
कमला तो तैयार बैठी थी। उसने भाभी और भाईजान के बैठते ही रामकली की धुन बजानी आरम्भ कर दी।
प्रज्ञा को आज समझ आया कि शुष्क ज्ञान-चर्चा से इस प्रकार की पूजा को लोग क्यों पसन्द करते हैं। जहाँ ज्ञान-चर्चा मस्तिष्क को प्रेरित करती है, वहीं संगीत के समयोचित स्वर आत्मा का ध्यान केन्द्रित करते हैं। फिर कमला ने अपने मास्टर से सीखा एक पद इसी राग में गा दिया। उसने गाया–
मोहे लागी लगन हरिचरणन की।
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