उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
उमाशंकर ने बात बदलने के लिए कह दिया, ‘‘तुम तो बहुत ही समझदार मालूम होती हो। किस जमायत में पढ़ती हो?’’
‘‘मैं पढ़ती नहीं। जितना पढ़ना चाहिए था, मैं पढ़ चुकी हूँ। मैंने हायर सैकण्डरी पास किया तो अब्बाजान ने कह दिया कि ज्यादा अंग्रेज़ी पढ़ी तो दिमाग खराब हो जाएगा। इसलिए पढ़ाई छोड़े दो साल हो चुके हैं।’’
‘‘और दिन-भर क्या करती हो?’’
‘‘मैं फोटोग्राफी करती हूँ। घर पर मैंने अपना एक स्टूडियो बनाया हुआ है और जब भी जहाँ कोई खूबसूरत चीज दिखाई देती है, उसकी तस्वीर उतार लेती हूँ।’’
‘‘तो यहाँ भी अपना कैमरा लाई हो?’’
‘‘हाँ!’’
‘‘और यहाँ कोई खूबसूरत चीज दिखाई दी है या नहीं?’’
‘‘दो बहुत खूबसूरत जानवर दिखाई दिए हैं। खाने के बाद उनके फोटो लूँगी।’’
‘‘ओह! वे जानवर कहाँ बँधे हुए हैं?’’
‘‘वे बँधे हुए नहीं, आजाद हैं। जब फोटो लूँगी तो आपको पता चल जाएगा। आपने आज मेरे मन की बात कही है।’’
‘‘क्या?’’
‘‘यही कि खूबसूरती रंग के अलावा भी होती है। मैं भी यही मानती हूँ। इस पर भी गोरा रंग अच्छा मालूम होता है। मेरा रंग कुछ गन्दमी है।’’
‘‘मगर तुम्हारे ‘फीचर्स’ रंग की कमी को पूरा ही नहीं कर रहे, बल्कि खूबसूरती में इजाफा भी कर रहे हैं?’’
‘‘ओह! यह कैसे?’’
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