उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
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भोजन समाप्त कर ज्ञानस्वरूप कमला को लेकर सालिहा के कमरे में गया और दो मिनट में ही लौट आया। उस समय तक प्रज्ञा और सरस्वती ड्राइंगरूम में आ खड़ी हुई थीं। ज्ञानस्वरूप ने आते ही कहा, ‘‘छोटी अम्मी अपने कमरे में नहीं हैं।’’
‘‘तो कहाँ हैं?’’
‘‘उनका सूटकेस भी वहाँ नहीं है।’’
‘‘तो भाग गई हैं?’’ प्रज्ञा ने पूछ लिया।
‘‘या भगा दी गई हैं?’’ ज्ञानस्वरूप ने चिन्ता अनुभव करते हुए कहा।
सरस्वती का कहना था, ‘‘मैं समझती हूँ, न भागी है न भगाई गई है। ऐसा मालूम होता है आज उसको तुम्हारे अब्बाजान का खत आया है। वह दिल्ला आज आनेवाले थे। शायद वह इसी समय आ रहे हैं और सालिहा उनको ‘रिसीव’ करने हवाई-पत्तन पर गई है।’’
‘‘मगर अपना सूटकेस ले गई है?’’
‘‘यह तो उनके साथ होटल में रहने के लिए हो सकता है?’’
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