उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यही तो मैंने लिखा था। लिखित बयान में तो सिर्फ इशारा किया था, मगर मैं यह तब बतानेवाली थी, जब उनका वकील इस विषय में मुझसे जिरह करता।’’
‘‘मैं यह नहीं पूछ रहा। मैं तो यह पूछ रहा हूँ कि अम्मी को यह सब-कुछ बताने से क्या मतलब था?’’
‘‘हाँ दादा! यह भूल हो गई है। कहो तो जाकर उनके पाँव पकड़ मुआफी माँग लूँ।’’
‘‘नहीं, अभी बैठो। भोजन कर लो। अपना पेट भर लो। भरे पेट से बात ठीक ढंग से हो सकेगी।’’
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