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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


उत्तर महादेवी ने ही दिया। उसने कहा, ‘‘जब आप परमात्मा के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो मन्दिर-मस्जिद में जाने से क्या होगा। राम-राम कहने से क्या होगा? इससे परमात्मा प्रसन्न नहीं होता। राम का आदेश मानना ही उसकी पूजा करनी कही जा सकती है।’’

‘‘मैंने परमात्मा का कौन-सा आदेश नहीं माना?’’

‘‘दोनों पुत्रों में एक का पक्ष लेने की जो बात कह रहे हैं। परमात्मा का नियम है कि कर्म का फल मिलता है। जब तक कोई पाप कर्म नहीं करता, परमात्मा उससे नाराज नहीं होता और आप तो अकारण ही उमा से नाराज हो रहे हैं।’’

‘‘तो मैं शिव की सहायता न करूँ?’’

बात उमाशंकर ने कही, ‘‘मैंने तो यह बताया है कि इसके व्यवसाय में मैंने पाँच हजार की सहायता दी है। आप भी दे सकते हैं। मैं इसे बुरा नहीं मानता।

‘‘परन्तु मैं अपने को मूर्ख नहीं मानता जो छोटे भाई को अपने साथ दौड़ लगाने की स्वीकृति न दूँ।’’

‘‘तुम दोनों का दिमाग खराब है।’’

‘‘पर पिताजी! कल आप दुकान देखने तो चलेंगे?’’ शिव न बात बदल दी।

‘‘क्यों उमा! मुझे जाना चाहिए क्या?’’

‘‘जी! मैं भी तो देखने जा रहा हूँ।’’

इसने बात निश्चय कर दी। रविशंकर शिव की ली हुई दुकान देखने के लिए जाना मंजूर कर बैठा। उमाशंकर ने कह दिया, ‘‘पिताजी! मैं यहाँ से ठीक आठ बजे अपनी मोटर में चलूँगा। आप भी चल सकते हैं।’’

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