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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘मुझे डर है कि तुम दोनों एक-दूसरे से झगड़ा करोगे और एक दूसरे की जान के ग्राहक बन जाओगे।’’

‘‘ऐसा क्यों होगा?’’

‘‘औरत के पीछे खून होते देखे जाते हैं।’’

‘‘जो ऐसा करते हैं, जाहिल और मूर्ख होते हैं। मैं ऐसा नहीं करूँगा। एक दिन दादा से माताजी के सम्मुख बात हुई थी और दादा ने माना था कि मुझे सत्य व्यवहार से उसे विजय करने की छूट होनी चाहिए।’’

‘‘मुझे तुम मूर्खों की बात समझ नहीं आती।’’

‘‘हाँ, यह तो है। पर पिताजी! आ सकती भी नहीं। आपमें और हममें अन्तर है। आप तो अब निपट नास्तिक हैं और हम दोनों भाई परमात्मा में आस्था रखते हैं और कमला भी प्रज्ञा बहन की शिष्या है और परमात्मा पर विश्वास रखती है।’’

‘‘अच्छा देखो! यदि उमा खाली हो तो उसे बुलाओ। मैं आज तुम दोनों को कुछ अक्ल की बात समझाना चाहता हूँ।’’

शिवशंकर उठा और बाहर दादा के कमरे में चला गया। उमाशंकर उस समय खाली था। उसने कहा, ‘‘चलो दादा! पिताजी बुलाते हैं।’’

उमा ने अपने कम्पाउण्डर से कहा, ‘‘कोई आये तो मुझे बुला लेना।’’

यह कह वह शिवशंकर के साथ ड्राइंगरूम में आ गया।

इस समय महादेवी भी आ गई थी। वह प्रज्ञा के घर गई हुई थी। वह भी दोनों भाइयों को एक ही लड़की से विवाह के लिए प्रतिस्पर्धा करते देख चिन्ता अनुभव किया करती थी। वह प्रज्ञा के सम्मुख कमला को समझा आई थी कि उसे एक नौका में सवारी करना चाहिए, नहीं तो भवसागर में डूबेगी। कमला ने स्पष्ट कहा था, मैं अभी नाबालिग हूँ। इसलिए किसी से भी पक्की बात करूँगी तो कानून के खिलाफ करूँगी। इस कारण मैं किसी को हाँ अथवा ना नहीं कह सकती।’’

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