उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो अम्मी! जरा दरवाजे से कान लगा माँ-बेटी में प्रेम-प्रलाप होते सुनना।’’
‘‘मैंने कोशिश की है, मगर कमरे में बिल्कुल खामोशी है। मेरा तो दिल बैठा जा रहा महसूस होता है। किसी खौफनाक हादसे का शुबाह हो रहा है।’’
प्रज्ञा कमरे से निकल कमला के कमरे के बाहर चली गई। पीछे-पीछे ज्ञानस्वरूप भी वहाँ जा पहुँचा। दोनों कान लगा सुनने लगे।
बहुत यत्न करने पर बहुत ही धीमी-सी आवाज कमला की सुनाई पड़ी, ‘‘अभी चुपचाप सो जाओ, नहीं तो हल्ला कर घर भर को जगा दूँगी।’’
इस पर सालिहा की आवाज़ आई, ‘‘तो तुम नहीं सोओगी?’’
‘‘अम्मी! मैं अभी तुम्हारे कमरे में जा सोऊँगी। मुझे आदत है कि मैं पलंग पर अकेली ही सो सकती हूँ।’’
‘‘और शादी के बाद भी ऐसा कर सकोगी।’’
‘‘यह तब देखूँगी। अभी मुझे इस बात पर गौर करने की फुरसत नहीं।’’
‘‘यहाँ मेरे साथ क्यों नहीं सो जातीं?’’
‘‘अम्मी, सो जाओ, जब नींद आयेगी तो सो जाऊँगी।’’
इसके बाद भीतर फिर खामोशी हो गई। ज्ञानस्वरूप ड्राइंगरूम से एक कुर्सी उठा लाया और कमरे के द्वार के बाहर रखकर बोला, ‘‘प्रज्ञा! तुम जाकर आराम करो। मैं यहाँ इन्तजार करूँगा।’’
‘‘मेरा विचार है कि अम्मी के सो जाने पर वह कमरे से निकलेगी और अपनी अम्मी के कमरे में जा सोने की कोशिश करेगी।’’
‘‘मैं यहाँ इसलिए बैठा हूँ कि अगर किसी किस्म की कशमकश की खबर भीतर से आई तो कमला की मदद की कोशिश करूँगा।’’
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