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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

तृतीय परिच्छेद

1

अब्दुल हमीद के मुकद्दमा वापस ले लेने में कारण यह था कि वह समझ गया था कि मुकद्दमे का निर्णय दो वर्ष में नहीं हो सकेगा और तब तक नगीना बालिग हो जाने से माता-पिता से बगावत करने का हक हासिल कर लेगी। उसने रुपया व्यय करना व्यर्थ समझ वकील को लिखकर दे दिया कि वह अदालत में यह लिखकर दे दे कि मेरी अपने लड़की-लड़के से सुलह हो गई है। इसका नतीजा यह हुआ है कि मुझमें और लड़की में शादी के मजबून पर एक राय हो गई है।

यह लिखकर देने के बाद वह अपने पुत्र की दुकान पर जा पहुँचा उसने लड़के से कहा, ‘‘यासीन! मैंने मुकद्दमा वापस ले लिया है।’’

‘‘अब्बाजान! अभी तो अदालत ने आपकी अर्जी को मंजूर नहीं किया। अभी तक मेरी और कमला की जमानत कायम है। मैं आज विदेश में जाना चाहूँ तो मुझे पासपोर्ट नहीं मिल सकता। इस कारण जब तक मुझे और कमला को जमानत से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक आपका डण्डा सिर पर कायम है।’’

‘‘मगर मैंने खत लिखकर दे दिया है।’’

‘‘मगर उस पर मैजिस्ट्रेट ने कोई हुक्म तो नहीं दिया?’’

‘‘मैं तो तुमको एक तजवीज़ पेश करने आया था।’’

‘‘वह आप कर सकते हैं। अगर जमानत रहते वह मानी जा सकी तो मैं मान जाऊँगा।’’

‘‘मान तो सकते हो। सुनो! यह कि तुम अपना यहाँ का कारोबार मेरे हवाले कर दो। मैं तुम्हें दस लाख रुपये की पूँजी से बम्बई में एक छोटी-सी इण्डस्ट्री खुलवा दूँगा।’’

‘‘आप यहाँ का काम किसको देना चाहेंगे?’’

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