उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
|
5 पाठकों को प्रिय 391 पाठक हैं |
खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘कल लड़के को देख लीजिए। पीछे बात करेंगे।’’
परन्तु रात यासीन और उसकी पत्नी प्रज्ञा में बात हुए बिना नहीं रही। बात प्रज्ञा ने ही की। उसने कहा, ‘‘दादा ने जो गुड़िया मुझे दी है, उसकी सूरत-शक्ल तो नगीना से बहुत कुछ मिलती है। अगर वैसी ही उसे पोशाक पहना दी जाए तो वह एक बड़ी सवा पाँच फुट की गुड़िया ही दिखाई देगी।’’
इस पर यासीन ने कह दिया, ‘‘मैंने इस बाबत अब्बाजान की राय जानी है। वह इस शादी के हक में नहीं हैं।’’
‘‘मगर मेरी शादी के वक्त तो आपने अब्बाजान से राय नहीं की थी?’’
‘‘तो यह नगीना भी कर सकती है। मगर वह अभी नाबालिग है।’’
‘‘मैंने उसकी अम्मी से बात की है। वह कहती है कि वह लड़की आपके लिए मुकर्रर है।’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘आपकी बीवी बनने के लिए।’’
‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ यासीन ने चिन्ता व्यक्त करते हुए पूछ लिया।
‘‘मैंने यही बात अम्मी से कही थी। मैंने कहा था कि आप तो उसके भाई हैं। इस पर वह कहने लगीं कि हम मुसलमानों में यह होता है और यह लड़की आपके वालिद शरीफ से भी नहीं है।’’
इस पर यासीन चिन्ता में पत्नी का मुख देखता रह गया।
|