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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘कमला उर्फ नगीना मेरी बहिन है। इसकी माँ और मेरी माँ भिन्न-भिन्न हैं। यह मुझसे बहुत स्नेह रखती है। उसके विचार में मैं उसकी, उसके पिता से अधिक हिफाजत करने में रुचि रखता हूँ। इस कारण मेरे पास रहती है। जब तक वह चाहे, मेरे घर में रह सकती है।’’

कमल के बयान इससे भिन्न थे। उसने बयान दिए–

‘‘मेरा पहला नाम नगीना था। नगीना फारसी भाषा का शब्द है। मुझे यह पसन्द नहीं रहा। इसलिए मैंने यह नाम बदल कर कमला रख लिया है। कमला इसलिए कि कमल एक फूल को कहते हैं। वह मुझे बहुत पसन्द है।’’

‘‘नगीना भूषण में किसी पत्थर के टुकड़े को कहा जाता है। मुझे यह समझ आया कि नगीना से कमल एक अच्छी वस्तु है। इसलिए मैंने अपना नाम कमला रख लिया है।’’

‘‘इसका हिन्दू-मुसलमान से कोई सम्बन्ध नहीं। मगर मैं मुसलमान नहीं हूँ। मेरे ख्यालात इस मजहब से नहीं मिलते।’’

‘‘मैं इस मजहब की दूसरी बातों के विषय में इस अदालत में बहस नहीं करना चाहती। सिर्फ उन बातों को बताती हूँ, जिस वजह से मैं किसी भी मुसलमान के घर में रहना नहीं चाहती।’’

‘‘मेरे अब्बाजान कहते हैं कि वह मेरे पिता नहीं अर्थात मैं अपनी माँ की पहली शादी का नतीजा हूँ। मुझे इसका ज्ञान नहीं। मुझे, जब से होश आयी है, मैं अब्दुल हमीद के घर में उनकी लड़की के रूप में रहती रही हूँ। आज से तीन महीना पहले मेरे वालिद अब्दुल हमीद साहब ने कहा कि वह मेरी शादी अपने लड़के मुहम्मद यासीन साहब से करना चाहते हैं। इसलिए मुझे दिल्ली जाकर उनके घर में रहना चाहिए।’’

‘‘मैंने तब भी कहा था कि वह रिश्ते में मेरे भाई लगते हैं। तब मुझे मेरे जन्म की कहानी बताई गई। इस पर भी मेरा स्पष्ट रूप में कहना था कि मेरे मन में मुहम्मद यासीन के लिए भाई की भावना है, इस कारण मैं उनकी पत्नी नहीं बनूँगी। इस पर भी पूरा परिवार दिल्ली आया और मुझे भाई मुहम्मद यासीन साहब के घर में रख गया।’’

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